भील जाति के रोबिनहुड को दी जायेगी श्रद्धांजलि,बदलेगा मप्र के एक और Railway Station का नाम

भील जाति के रोबिनहुड को दी जायेगी श्रद्धांजलि
भोपाल । मध्य प्रदेश में एक और रेलवे स्टेशन के नाम के बदलने की तैयारियां चल रहीं हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आशय की घोषणा करते हुए बताया कि ‘इंडियन रोबिनहुड ’ यानी डकैत बनकर लोगों की मदद करने वाले तथा स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले ‘मामा टंट्या भील’ के नाम पर इंदौर के एक स्टेशन का नाम रखा जायेगा।
स्टेशन का नाम बदलने की हो रही है तैयारी : सीएम
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ट्वीट करते हुए यह जानकारी दी कि आदिवासी गौरव, मामा टंट्या भील के नाम पर इंदौर के पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम रखा जायेगा। उन्होंने कहा कि मामा टंट्या भील का बलिदान दिवस आगामी 4 दिसम्बर को होगा। सरकार की मंशा है कि उनके बलिदान दिवस तक पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम मामा टंट्या भील रखकर श्रद्धांजलि दी जाए। उन्होंने बताया कि इस बारे में तैयारियां की जा रहीं हैं। श्री सिंह ने बताया कि रेलवे स्टेशन के अलावा इंदौर के बस स्टैंड का नाम भी मामा टंट्या भील के नाम पर रखा जायेगा।
बदला जा चुका है Habibganj Railway Station का नाम
यह तो सभी को मालूम हैं कि मध्य प्रदेश सरकार ने इससे पहले गांड रानी कमलापति के नाम पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदला जा चुका है। अब राज्य सरकार ने दूसरे रेलवे स्टेशन का नाम बदलने का फैसला लिया है और उसकी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश के विकास में आदिवासियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। आज समय आ गया है कि उनके द्वारा किये गये कार्यों को पूरा सम्मान दिया जाये।
कौन थे मामा टंट्या भील
टंट्या भील ‘मामा टंट्या भील’ के नाम से लोकप्रिय हैं। टंट्या भील का जन्म 1840 में पूर्वी निमाड़ के बडाडा गांव में स्वदेशी आदिवासी समुदाय के भील जनजाति में हुआ था। इस गांव को अब खंडवा के नाम से जाना जाता है। उनके जन्म के समय अंग्रेजों का शासन था। इस समय मामा टंट्या भील ने अग्रेंजों के खजाने को लूट कर भारतीयों की मदद करते थे और स्वतंत्रता संग्राम में लगे लोगों की भी मदद करते थे। इसके चलते अंग्रेजों ने उन्हें डकैत करार दिया था। इसलिये टंट्या भील को 1878 और 1889 के बीच डकैत माना जाता था। उन्हें पहला ‘भारतीय रोबिनहुड’ माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा डकैत घोषित किये जाने के बावजूद भारतीय लोग उन्हें वीर योद्धा के रूप में पहचानते थे। टंटया भील ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर अंग्रेजों का सामना किया और अनेक कड़े कदम उठाकर अंग्रेजों को जमकर छकाया। अंग्रेजों ने टंट्या भील को अनेक बार पकड़ने का प्रयास किया किन्तु भारतीयों की मदद के चलते अंग्रेज नाकाम रहे। काफी प्रयासों के बाद 1874 को अंग्रेजों को टंट्या भील को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिल पायी थी।